बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बच्चे के भाषा विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
2. शैशवावस्था में भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
3. भाषा के दोषों को दूर करने के उपाय बताइये।
4. उच्चारण दोष पर टिप्पणी कीजिए।
5. भाषा विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
6. भाषा विकास का महत्व बताइये।
उत्तर -
भाषा विकास
(Language Development)
बच्चों का भाषा विकास जितना तीव्र होगा बौद्धिक विकास भी उतना तीव्र होगा, उतना ही बच्चा बुद्धिमान होगा। बच्चे का भाषा विकास जितना शीघ्र होगा उतना ही शीघ्र वह दूसरों की बातें समझने लगेगा। अपनी बातें आवश्यकताएँ आसानी से तथा ठीक तरह से दूसरों को समझा सकेगा। बच्चे की पहली भाषा उसका रोना व मुस्कराना होता है। बच्चे की भाषा विकास में काफी समय लगता है। जन्म के बाद तकलीफ होने पर भूख लगने पर रोशनी व तेल आवाज पर बच्चा रोने लगता है। माँ की गोद, पेट भरा होने पर मुस्कराता, हंसता है। जन्म के समय तथा बाद में भी 2-3 माह तक उसकी भाषा यही होती है। मनपसन्द वातावरण होने पर खुश होना तथा नापसन्द होने पर रोना। 2-3 माह में बच्चे अपने मुँह में कुछ कबूतर की गुटरगूं के समान आवाज निकालते हैं। जिनका कोई अर्थ नहीं होता है। धीरे-धीरे इन निरर्थक शब्दों की गिनती बढ़ने लगती है। प्रसन्न होने पर बच्चों से बात की जाये तो वह इस प्रकार से शब्द निकलता है। छींकते समय, जम्हाई लेते समय, व खांसते समय बच्चा कुछ आवाजें निकालना है। इनमें से कुछ आवाजों के निकलने से बच्चें में स्वर परिपक्वता आ जाती है। उम्र बढने के साथ-साथ स्पष्ट होने लगती हैं। इन आवाजों में स्वर तथा व्यंजन सुनाई देने लगते हैं, जैसे आ ई. मा मा डा. डा आदि। इस क्रिया को बबलाना (Babbling) कहते हैं। यह बबलाना प्रक्रिया दूसरे माह से प्रारम्भ होती है। 7- 8 माह के अन्त में यह बबलाने की आवाज शब्दों में बदल जाती है। कभी-कभी बच्चा अपनी आवश्यकताओं को अपने स्वभाव से भी प्रकट करता है, जैसे जो वस्तु नहीं चाहिए उसे अपने हाथ से पीछे कर देता है। हाथ उठाकर मुस्कुराता है अर्थात् आपकी गोद में आना चाहता है। इसी प्रकार उम्र बढ़ने पर बच्चे एक शब्द व हाव-भाव से अपनी बात बताते हैं, जैसे खाना कहकर या खाने का इशारा कर वह बताता है कि उसे भूख लगी है। उम्र बढ़ने के साथ ही हाव- भाव कम प्रकट करता है।
बच्चा दूसरों की नकल पर जल्दी बोलना सीखता है। प्रारम्भ में वह स्वयं अपनी ही नकल करता है। शुरू से सही नहीं बोल पाता। बार-बार दोहराने पर शुद्ध बोल लेता है।
बालक का शब्द भंडार
बच्चे के शब्द भंडार की वृद्धि उसकी उम्र बढ़ने के साथ होती है। बच्चा नये शब्द सीखने के साथ-साथ उनका अर्थ सीखता है। 1 वर्ष का बालक 4 Zkk 5 शब्द 11⁄2 वर्ष का बालक 10 शब्द, 2 वर्ष का बच्चा 260 शब्द, ढाई वर्ष का बच्चा 450 3 वर्ष का बच्चा 1000 शब्द 4 वर्ष का बच्चा 1550 शब्द तथा 5 वर्ष के बच्चे का शब्द भण्डार 2100 शब्द सीख चुका होता है। विभिन्न अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का शब्द भण्डार अधिक होता है। बच्चे का शब्द भण्डार कितना होगा? यह वातावरण पर भी निर्भर करता है। संयुक्त परिवार में रहने वाले बच्चों का शब्द भण्डार स्वतंत्र परिवार में रहने वाले बच्चों की अपेक्षा अधिक होता है। इसी प्रकार बच्चे का वातावरण, वंशानुक्रम, प्रेरणा आदि अलग-अलग हैं। बच्चा क्रियाओं में (दो, दो, लगे, जाओ, लाओ) को पहले सीखता है। 2 वर्ष का बच्चा सर्वनाम ( मैं हम तुम विश्लेषण) (अच्छा, गन्दा, ठंडा, गरम) का प्रयोग करता है। 2 वर्ष का बच्चा 3-4 शब्दों के वाक्य बोलता है।
मनोवैज्ञानिकों ने बच्चों के शब्द भंडार को दो भागों में बाँटा है -
(1) सामान्य शब्द भंडार - इसके अन्तर्गत वे शब्द आते हैं जोकि बच्चा सामान्यतः प्रयोग करता है ये शब्द क्रियाएँ, सर्वनाम, विश्लेषण होते हैं।
(2) विशिष्ट शब्द भंडार - इसके अन्तर्गत रंग, धन, समय, अशिष्ट सम्य भाषा तथा बच्चे के गुप्त शब्द भंडार आते हैं। इस विशिष्ट शब्द भंडार का प्रारम्भ 4 वर्ष की उम्र से प्रारम्भ होता है।
5 वर्ष का बच्चा बिल्कुल सही शब्दों का प्रयोग करने लगता है।
भाषा विकास का महत्व
(Importance of Language Development)
वह भाषा जिसे बोलकर बच्चा अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करता है। इसके बोलने का बालक के जीवन में विशेष महत्व है-
(1) भाषा ज्ञान होने पर बच्चा स्वयं का मूल्यांकन कर सकता है। बच्चा घर या बाहर जहाँ उठता बैठता व खेलता है वे उसके बारे में क्या सोचते हैं, उनकी क्या धारणा है? यह बच्चा भाषा ज्ञान से जान सकता है।
(2) भाषा ज्ञान द्वारा बच्चा अपनी बात दूसरों को समझा सकता है। दूसरों की बात समझ सकता है। भाषा ज्ञान होने पर बच्चा समाज के नियम प्रतिभागों आदर्शों को समझ सकता है, जो अपने विचार इच्छाएँ जितनी तरह से प्रकट कर सकेगा वह उतनी ही जल्दी स्वयं को समाज में समायोजित कर सकेगा तथा लोगों के द्वारा पसन्द किया जायेगा। बच्चा कितनी अच्छी भाषा का प्रयोग कितनी चतुराई से करता है, अपनी बात कितनी आसानी से दूसरों को समझा सकता है। इसी आधार पर समाज उसका मूल्यांकन करता है।
(3) जिस बच्चे का भाषा ज्ञान जितना अधिक होगा वह उतनी ही आसानी से लेखन कार्य कर सकेगा जो उसकी शिक्षा प्राप्ति में सहायक होगा।
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले तत्व
सब बालकों का भाषा विकास एक ही गति तथा एक ही दर से नहीं होता है। भाषा विकास शब्द भंडार में व्यक्तिगत विभिन्नताएँ पाई जाती हैं, जिसके अग्रलिखित कारण हैं
(1) स्वास्थ्य - लम्बी बीमारी से उठने पर बच्चा कमजोर होता है, भाषा अभ्यास छूट जाता है। इसलिए ऐसे बच्चे जो अक्सर बीमार रहते हैं या अधिक समय तक बीमार रहते हैं उनका भाषा विकास स्वस्थ बच्चे से पिछड़ा रहता है।
(2) आर्थिक सामाजिक स्तर - वे बच्चे जिन्हें उच्च आर्थिक सामाजिक स्तर का वातावरण प्राप्त होता है, उनका अच्छा होता है। उच्च स्तर के बच्चे को सभ्य शिष्ट वातावरण मिलने से उनके शब्द भंडार में शिष्टाचार के शब्द अधिक रहते हैं। भाषा ज्ञान जल्दी विकसित होता है। निम्न स्तर के बच्चों के शब्द भंडार में गन्दे शब्द अधिक होते हैं।
(3) निर्देशन - जिन बच्चों के शब्दों के प्रयोग उच्चारण के लिए जितने सही निर्देश प्राप्त होंगे उनका उच्चारण उतना ही शुद्ध होगा। सही शब्द का सही स्थान पर प्रयोग होगा यदि बच्चों को नये शब्द उनके चित्र या मॉडल दिखाकर सिखाये जायें तो बच्चों को सही शब्द तथा उनका सृजनात्मक शक्ति तीव्र होती है। उनकी I. Q. कम होती है। दोनों में निम्न सह-सम्बन्ध हैं.
(i) लिंग - लड़कियाँ प्रत्येक उम्र में लडकों से जल्दी बोलना सीखती हैं। लड़कियों का शब्द भंडार वाक्य प्रयोग शब्दों का प्रयोग, वाक्यों की लम्बाई, लड़कों की अपेक्षा अधिक होती है। लिंग किस सीमा तक IQ को प्रभावित करता है यह एक महत्वपूर्ण विषय है। लड़के बौद्धिक कौशलों में लडकियों से आगे होते हैं। जबकि लड़कियाँ भाषा विकास तथा प्रत्याक्षत्मक कौशलों में लड़कों से श्रेष्ठ होती हैं। स्कूल में देखा जाये तो लड़कियों का अध्ययन व अनुशासन लड़कों से अच्छा होता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि 6 से 14 वर्ष तक लड़कियों का IQ. लड़कों से अधिक होता है। 17 वर्ष की उम्र में लड़के व लड़कियों का IQ बराबर होती है उसके बाद लड़कों की I. Q. बढ़ जाती है।
(ii) बुद्धि समायोजन - कम बुद्धि वालों की अपेक्षा तीव्र बुद्धि वाले हर जगह अपने को आसानी से समायोजन कर लेते हैं। जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती है समायोजन अच्छा होता जाता है।
(iii) परिवार का आकार व बच्चे क्रम - पहली सन्तान अन्य बच्चों की अपेक्षा बुद्धि वाली होती है। अपरिपक्व बुद्धि वाले माता-पिता को समझने की बौद्धिक दृष्टि अपरिपक्व होती है। उसी प्रकार जितना बड़ा परिवार होगा बच्चे की 1. Q. कम होगी, क्योंकि बच्चों की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती है, माता-पिता उनका ठीक से ध्यान नहीं रख पाते हैं। उचित देखभाल न होने पर उचित बौद्धिक विकास नहीं हो पाता है।
(iv) स्वास्थ्य – स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है। इसलिए बुद्धि के लिए शारीरिक स्वास्थ्य का होना आवश्यक है। शारीरिक रूप से कमजोर बच्चे अपने साथी बच्चों से बुद्धि के विकास से पीछे रह जाते हैं। इसी प्रकार से बच्चे जिनका जन्म समय से पहले हो जाता है, उनका बौद्धिक विकास भी ठीक नहीं होता है।
(v) प्रजाति - प्रसिद्ध विद्वान जेनसेन के अनुसार बुद्धिलब्धि में 80% योगदान वंशानुक्रम या प्रजाति का होता है। समय-समय पर बुद्धिलब्धि में परिवर्तन भी वंशानुक्रम के कारण माना जाता है।
(vi) जन्मतिथि- बुद्धिलब्धि तथा बच्चे की जन्मतिथि माह पर अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाले गये कि वे बच्चे जो मार्च से सितम्बर माह के अन्दर पैदा हुए हैं, उनकी IQ अक्टूबर से फरवरी माह में पैदा हुए बच्चों की अपेक्षा अधिक होती है पर ऐसा क्यों होता हैं, इस पर प्रकाश नहीं डाला गया है।
(vii) अपरिपक्व बच्चे - हावर्ड तथा ओरेल ने जो अध्ययन किये उनके अनुसार समय से पहले पैदा हुए बच्चों की बुद्धि मन्द होती है।
(viii) बुद्धि तथा व्यक्तित्व - वे बच्चे जो जितनी अधिक समस्याओं को हल करते हैं उनकी 1. Q. में उतना अधिक विकास होता है। अधिक I.Q. वाले बच्चों में प्रतियोगिता स्वायत्तता की भावना अन्य बच्चों से अधिक होती है।
पूर्व बाल्यावस्था तक बालक का बौद्धिक विकास
जन्म के पश्चात् शिशु की शारीरिक प्रतिक्रियाएँ उसकी शारीरिक दशाओं के आधार पर होती हैं। जब बच्चे को भूख लगती है या अन्य कोई शारीरिक कष्ट होता है। ठंड या गर्मी लगती है तो वह रोने लगता है। इसी प्रकार तेज प्रकाश व आवाज होने पर भी वह रोने लगता है। दूसरे सप्ताह से प्रकाश की ओर देखने का प्रत्यन करने लगता है। तीसरे माह तक आँखों की पेशियों में समन्वय आ जाता है।
भूख लगने पर ऊँची आवाज में रोने लगता है तथा बीच में दूध पीने जैसी आवाज निकालता है। दर्द होने पर अजीब आवाज में रोता है। 3 माह का बच्चा यह समझ जाता है कि ध्यानाकर्षण के लिए रोना अच्छा साधन है। 4 माह की उम्र में यदि कोई उसके साथ खेलता बन्द कर देता है तो वह रोने लगता है। इसी प्रकार 5 माह के बालक को बिना बुलाए उसके पास से निकल जाये तो रोने लगता है। इसी प्रकार 5 माह के बालक रोने लगते हैं तो मुँह लाल हो जाता है सांस फूलने लगती है तथ आंसू आ जाते हैं।
6-7 माह का बालक बैठना शुरू कर देता है तथा आवाज निकालता है। कुछ स्वर व्यंजन जोड़कर जैसे मामा, नाना, दादा बोलना शुरू कर देता है। हाथ में जो वस्तु आ जाती है, उसे मुँह में ले जाने की कोशिश करता है। जब बच्चा इस प्रकार तुतलाकर स्वयं 'व्यंजन शब्द' जोड़कर बोलता है तो उसके स्वर-यंत्र का व्यायाम होता है। 9 माह का बालक बोलने लगता है, चलना, रेंगना सीख जाता है सहारा लेकर खड़ा हो जाता है तथा वह अपिरिचतों को देखकर शरमाने जैसी प्रतिक्रियाएँ करने लगता है। वह अपने आप को पहचानने लगता है। दूसरों के हाव-भाव देखकर वह क्या कर रहा है, इस बात को समझने लगता है। 1 वर्ष का बालक काफी इकहरे शब्द बोलने लगता है। स्मृति का भी विकास हो जाता। 2 वर्ष की उम्र तक वह काफी शब्द सीख जाता है। उसके शब्दों में विश्लेषण, क्रिया-विश्लेषण भी शामिल हो जाते हैं। वह प्रत्येक शब्द का अर्थ नहीं जानता है पर वो शब्दों का रट लेता है। यदि बालक की बुद्धि मन्द है या लम्बे समय तक बीमार रहा हो, बहरा हो या उससे बातचीत करने वाले कम हों तो वह देर से बोलना सीखता है। दो वर्ष की उम्र तक बालक का काफी बौद्धिक विकास हो जाता है। वह दूसरों का अनुकरण करने लगता है। एक बार दिखाए चित्र व वस्तु को पुनः पहचान लेता है। अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर खेलने लगता है। संगीत में रुचि लेने लगता है। यदि रो रहा होता है तो संगीत बजने पर चुप हो जाता है। 5 या 6 अक्षर के वाक्य तुतलाकर बोल लेता है। खांस देने पर स्वयं खासता है। यह अलग बात है कि उसे सही ट्रेनिंग दी जा सकती है।
2 वर्ष के बालक की स्मरण शक्ति काफी तेज विकसित हो चुकी होती है। यदि किसी क्रिया को बार-बार करने में आनन्द आता है तो उसे बार-बार दोहराता है। बालक के देखने की शक्ति बोलने की स्मरण शक्ति की अपेक्षा तीव्र होती है। वह एक वस्तु दिखाने पर व पुनः पूछे जाने पर पहचान जाता है। पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देता है। अपने स्वयं के शरीर को पूरी तरह संभाल लेता है। उसे नये-नये कार्य करना अच्छा लगता है। 2 वर्ष की आयु तक के बालक की रुचियों तथा अभिरुचियों का पता चल जाता है। बालक आत्म निर्भर होना चाहता है। वह अपने काम स्वयं करना चाहता है, जैसे नहाना, कपड़े पहनना, धोना सब स्वयं करना चाहता है।
4 वर्ष का बालक मानसिक रूप से इतना विकसित हो जाता है कि स्कूल भेजा जा सके। वहाँ वह कैंची से तस्वीरें काटना, गीली मिट्टी से खेलना, खिलौने बनाने की प्रकिया करता है। इस उम्र के बालक को गिनती याद कराने पर वह गिनती याद करने लगता है। बुकस के अनुसार " 4 वर्ष का बालक एक बात को 30-40 दिनों तक याद रख सकता है। इस उम्र तक बालक आत्म निर्भर हो जाता है। नहाना, कपड़े पहनना, आइने के सामने खड़ा होकर बात बताना आदि क्रियाएँ स्वयं करने लगता है। प्रारम्भ में उसे कुछ मदद की आवश्यकता होती है, किन्तु शीघ्र ही वह अपने काम स्वयं करने लगता है। बच्चे की कल्पना शक्ति का काफी विकास हो जाता है। वह पेन्सिल से कल्पना के आधार पर चित्र खींचता है।
4 वर्ष का बालक लगातार 15-20 मिनट तक एक काम को एकाग्रचित होकर कर सकता है। इस उम्र तक बालक का शब्द भंडार इतना बढ़ जाता है कि दूसरों द्वारा दी जाने वाली हिदायते तथा सुनाई जाने वाली कहानियाँ समझ जाता है। रेडियों सुनना, टेलीविजन देखना पसन्द करता है जो कि उसके शब्द भंडार को बढ़ाते हैं। इस उम्र में बालक संज्ञा शब्दों की अपेक्षा सर्वनाम व क्रिया शब्दों का प्रयोग अधिक करता है। शब्दों को पहचानने लगता है। वह सिक्के को पैसा कहता है. अंक गिनने लगता है. पर पहचान नहीं पाता है। 5-6 वर्ष की उम्र तक अंकों का अर्थ जान लेता है। 25, 50 पैसे के सिक्के पहचानने लगता है। 4 वर्ष की उम्र में उसकी भाषा में व्याकरण की कुछ गल्तियाँ होती हैं, किन्तु 6 वर्ष की उम्र में पहुँचते-पहुँचते वह बिना गलती के वाक्य बोलने लगता है। 6 वर्ष की उम्र का बालक स्पष्ट बोलने लगता है तथा तुतलाना छोड़ देता है।
साढ़े चार पाँच वर्ष की उम्र में बालक लिखाए गये अक्षरों को लिखने लगता है। ये बात दूसरी है कि इसके लिखने की गति कम होती है। 5 वर्ष का बालक बड़े-बड़े वाक्य बोलता है। हल्की अथवा भारी वस्तु के अन्तर को पहचान लेता है, विभिन्न वस्तुएँ, जैसे कंघी, कुर्सी, मेज, स्लेट, पेन सही प्रयोग जल्दी सीख लेता है।
(5) बुद्धि - विभिन्न बच्चों पर किये गये अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि बच्चे की I.Q. जितनी अधिक होगी उसका शब्द भंडार उतना अधिक होगा। उनका उच्चारण भी शुद्ध होगा तथा शब्द का वाक्य में सही प्रयोग होगा। कम IQ वाले बच्चों का शब्द भंडार सीमित होता है। उच्चारण सही नहीं होता है तथा शब्द का सही प्रयोग भी नहीं कर पाते हैं।
(6) परिपक्वता - बोलने का सम्बन्ध शरीर के विभिन्न अंगों से है, जैसे होंठ दांत, जीभ, फेफड़े, स्वर यंत्र तथा मस्तिष्क में बोलने का केन्द्र (वाणी केन्द्र) बोल में सहायक अंग जितने परिपक्व होंगे, बालक का भाषा विकास उतनी गति से होगा।
(7) वातावरण - जो बच्चे संयुक्त परिवार में रहते हैं। वे परिवार के अन्य सदस्य को बोलते सुनकर उसकी नकल से जल्दी बोलना सीख जाते हैं। एकांकी परिवार में ये समस्या होती है कि बच्चों से लोग कम बोलने वाले होते हैं। यह माता-पिता को चाहिए कि बच्चों से बातें करें व पड़ोस के बच्चों के साथ उन्हें खेलने दें ताकि उनका सही विकास हो सके।
परिवार का वातावरण शान्तिपूर्ण सहयोगी, प्रेमयुक्त होने पर बच्चों का भाषा विकास सही ढंग से होता है।
(8) व्यक्तिगत विभिन्नता - शान्त बच्चों की अपेक्षा उत्साही बच्चों का शब्द भंडार तथा भाषा - विकास तीव्र होता है। आवेगी गुस्सैल बच्चों का मस्तिष्क तीव्र होने पर भी उच्चारण सही नहीं होता है वे आवेश में सही शब्द नहीं बोल पाते है।
(9) परिवार में प्रयुक्त भाषाएँ - परिवार में किसी भी कारण से यदि अधिक भाषाओं का प्रयोग होता है तो भाषा - विकास की गति धीमी होती है।
|
- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
- प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
- प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
- प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
- प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
- प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
- प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
- प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
- प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
- प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
- प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
- प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
- प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
- प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
- प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
- प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
- प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
- प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
- प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
- प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
- प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
- प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
- प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
- प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।